यह ग्रामीण इलाके में टहलते हुए एक प्रोफेसर के रास्ता भूल जाने की कहानी है। वह एक चौराहे पर पहुँचे जहाँ अपने कुत्ते के साथ टहलते एक लड़के से उनकी भेंट हुई। “बेटा, यह रास्ता किधर जाता है?” उन्होंने पूछा। “मैं नहीं जानता।” “यह रास्ता किधर जाता है?” “मैं नहीं जानता।” और वह? “मैं नहीं जानता।” “और यह?” “मैं नहीं जानता।” “अरे बेवकूफ बच्चे, तुम्हें कुछ भी नही पता।” उस व्यक्ति ने कहा। “ठीक है,” लड़के ने कहा, “एक बात मुझे पता है। मैं आपकी तरह रास्ता नहीं भूला हूँ।”
मित्र, तुम्हारे आगे अनंतकाल है। या तो तुम अनंत जीवन की तरफ बढ़ रहे हो या नरक के जीवन की तरफ। बाइबिल कहता है, “इस से अचम्भा मत करो, क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे। जिन्होंने भलाई की है वे जीवन के पुनरूत्यान के लिथे जी उठेंगे और जिन्होंने बुराई की है वे दंड के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे।” (यूहन्ना 5:28,29) क्या तुम्हें मालूम है तुम किधर जा रहे हो? क्या तुम्हें मालूम है तुम अपना अनंत जीवन कहाँ बिताओगे? उस प्रोफेसर की तरह, तुम्हें इस जीवन में बहुत चीज़ें मालूम होंगी, तुम्हें इस जीवन के बारे में बहुत सी बातें मालूम होंगी, किंतु उसी तरह, मृत्यु के बाद तुम किधर जाओगे, यह शायद तुम्हें मालूम नहीं होगा।
मृत्यु-बाद के जीवन से हम बच नहीं सकते, किंतु हम उस स्थान का चयन कर सकते हैं। प्रभु ने कहा, “मैंने तुम्हारे समक्ष जीवन और मृत्यु दोनों प्रस्तुत किया है…इसलिए जीवन को चुनो” (व्यवस्थाविवरण 30:19)।
इसलिए, यदि तुम अपना गन्तव्य बदलना चाहते हो तो यह है तुम्हारी स्थिति और यह है तुम्हारी दिशा।
क्रब से परे दो मुख्य क्षेत्रों में से एक है स्वर्ग और दूसरा ईश्वर का साम्राज्य। यह प्रकाश और सौन्दर्य, पूर्ण शांति और आनंद की भूमि है। यह प्रभु की उपस्थिति में रहकर सभी प्रकार के आनंद, जो उन्होंने हमारे लिए रखा है, भोगने का जीवन है। साधारण मनुष्य इसके बारे में नही जान सकता, क्योंकि बाइबिल के अनुसार, ” जो आंख ने नहीं देखी, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ी वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपके प्रेम रखनेवालों के लिए तैयार की हैं” (I कुरिन्तियों 2:9)। फिर ईश्वर के साम्राज्य के रहस्यों को कौन जान सकता है? ईश्वर का वचन कहता है, “हे पिता, स्वर्ग और पृय्वी के प्रभु…मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि तू ने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा दखा, और बालकों पर प्रकट किया है,” (मत्ती 11:25)। और ये “बालक” ही परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करेंगे (मत्ती 18:3)। इसलिए प्रिय मित्र, ‘यदि तुम अपने ऊँचे और घमंडी प्रवृति को छोड़ विनम्र होकर यीशु की तरफ मुड़ोगे तो तुम देखोगे कि कितनी महान् चीजें तुम्हारे अनंतकाल के लिए संजोयी हुई हैं। और ईश्वर तुम्हें उस स्थान का रास्ता भी बताएँगे।
अनंतकाल का दूसरा स्थान नरक है। यह अंधकार और दु :ख से घिरा वह स्थान है, जहाँ यीशु को अस्वीकार करने वालों को हमेशा-हमेशा के लिए सताया जाएगा। यह स्थान शैतान और उसके दूतों के लिए उनके ही स्वभाव द्वारा तैयार करवाया गया; उनकी दुष्टता ने नर्क की आग को जन्म दिया (मत्ती 25:41)। मनुष्य जीवन पथ पर चलने के क्रम में यदि शैतान का रास्ता चुनता है तो वह शैतान के ही साथ अंत में वहीं पहुँचता है, जब वह “जिन में तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात् उस आका के अनुसार चलते थे…तथा शरीर, और मन की इच्छाएं पूरी करते थे” (एफिसियों 2:2,3)। दुष्ट अपके ही अधर्म के कर्मों से फंसेगा, और अपने ही पाप के बंधनों में बंधा रहेगा (नीतिवचन 5:22)। नरक को “मृत्यु” भी कहा गया है (प्रकाशित वाक्य 21:8), और पाप तुम्हें “पगार” देती है (रोमियो 6:23)। विषय-भोगों पर मन लगाना देना “मृत्यु” है (रोमियो 8:6); काम-सुख भोगना “मृत्यु” है (I तीमुथियुस 5:6) तुम धीरे-धीरे मृत्यु द्वारा निगल लिए जा रहे हो।
प्रभु यीशु ने विश्व में आकर अपना रक्त बहाया जिससे कि जो उन पर विश्वास करते हैं और उन्हें स्वीकार करते हैं वे इस अनंत पीड़ादायक स्थान से मुक्ति पाकर अनंत जीवन पा सकें। वे मार्ग और सच्चाई तथा जीवन हैं (यूहन्ना 14:6)। “जो पुत्र (यीशु) पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है; परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है” (यूहन्ना 3:36)।
प्रिय पाठक, अपने पथ पर रूकें। अपने आप से पूछें : मैं कहाँ जा रहा हूँ? मैं मृत्यु के बाद किस स्थान पर पहुँचूँगा? आश्वस्त हो जाएँ कि आप सही दिशा में यात्रा कर रहे हैं।
प्रार्थना : प्रिय यीशु, मैं आपको अपना उद्धारकर्ता और प्रभु मानता हूँ। कृपया मेरे हृदय में विराजें। मेरे सारे पापों को धोकर मुझे स्वर्ग (अनंतजीवन का) का अधिकारी बनाएँ।
एक विशेष सूचना : ईश्वर के अनंत साम्राज्य में महिमा और सौन्दर्य के भिन्न-भिन्न कई क्षेत्र हैं।
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